आखिर हवाएं गुनगुनाने लगी हैं
मौन को मुखरित कराने लगी हैं;
भावों का कोमल गात अवसुन्न था
चावों का चांचल्य हुआ विपन्न था
डूबती साँसें स्पंदन को चाहने लगी हैं;
क्षितिज पथ से कोई खींचे प्राणडोरी
काल-कमण्डल लिए खड़ा है अघोरी
ज्योतिमंद पुतलियाँ झिलमिलाने लगी हैं;
कितने युग बिताए यह युग पाने के लिए
इसी जन्म में और जन्म देदो जीनेके लिए
मन वीणा की सुप्त स्वरलहरियाँ गाने लगी हैं।
मौन को मुखरित कराने लगी हैं;
भावों का कोमल गात अवसुन्न था
चावों का चांचल्य हुआ विपन्न था
डूबती साँसें स्पंदन को चाहने लगी हैं;
क्षितिज पथ से कोई खींचे प्राणडोरी
काल-कमण्डल लिए खड़ा है अघोरी
ज्योतिमंद पुतलियाँ झिलमिलाने लगी हैं;
कितने युग बिताए यह युग पाने के लिए
इसी जन्म में और जन्म देदो जीनेके लिए
मन वीणा की सुप्त स्वरलहरियाँ गाने लगी हैं।
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