आखिर हवाएं गुनगुनाने लगी हैं - पोथी बस्ता
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मंगलवार, 6 अगस्त 2019

आखिर हवाएं गुनगुनाने लगी हैं

आखिर हवाएं गुनगुनाने लगी हैं
मौन को मुखरित कराने लगी हैं;

भावों का कोमल गात अवसुन्न था
चावों का चांचल्य हुआ विपन्न था
डूबती साँसें स्पंदन को चाहने लगी हैं;

क्षितिज पथ से कोई खींचे प्राणडोरी
काल-कमण्डल लिए खड़ा है अघोरी
ज्योतिमंद पुतलियाँ झिलमिलाने लगी हैं;

कितने युग बिताए यह युग पाने के लिए
इसी जन्म में और जन्म देदो जीनेके लिए
मन वीणा की सुप्त स्वरलहरियाँ गाने लगी हैं।

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