पीली रोशनी में एक लड़का रात के दूजे पहर,
रोज बुनता है फटी एक उजली सी चादर।
लोचनों में प्रश्न उसके उत्तरों की खोज करते
जो असल में हैं नदारद पर चित्त निर्मित रोज करते।
मन से संवादों में उलझा है बहुत अफसोस करके
अंजलि में आसमानों से टपकती ओस भरके।
ना जाने क्या वो सोचता है भाग्य रेखाएं डुबाकर
पीली रोशनी में एक लड़का रात के दूजे पहर
रोज बुनता है फटी एक उजली सी चादर।
वैसे तो कई चित्र हैं आसन्न उसके
पर कोई ऐसा नहीं जो दिल लुभा दे।
उसने खुद से हैं चुने कितने ही रिश्ते
पर कोई रिश्ता नहीं जो वो! निभा दे।
अब तुम बताओ आसमां में कितने तारे?
है कोई ऐसा जो चमके चांद बनकर?
पीली रोशनी में एक लड़का रात के दूजे पहर
रोज बुनता है फटी एक उजली सी चादर।
उसको आता है नहीं कवितायें लिखना
व्याकरण कमजोर है भाषाएं लिखना।
मां का आशिर्वाद कह लो या किसी का प्रेम कह लो
फिर भी महफिल में सुनाता ऐसा वैसा कुछ भी लिख कर
पीली रोशनी में एक लड़का रात के दूजे पहर
रोज बुनता है फटी एक उजली सी चादर।
रोज बुनता है फटी एक उजली सी चादर।
लोचनों में प्रश्न उसके उत्तरों की खोज करते
जो असल में हैं नदारद पर चित्त निर्मित रोज करते।
मन से संवादों में उलझा है बहुत अफसोस करके
अंजलि में आसमानों से टपकती ओस भरके।
ना जाने क्या वो सोचता है भाग्य रेखाएं डुबाकर
पीली रोशनी में एक लड़का रात के दूजे पहर
रोज बुनता है फटी एक उजली सी चादर।
वैसे तो कई चित्र हैं आसन्न उसके
पर कोई ऐसा नहीं जो दिल लुभा दे।
उसने खुद से हैं चुने कितने ही रिश्ते
पर कोई रिश्ता नहीं जो वो! निभा दे।
अब तुम बताओ आसमां में कितने तारे?
है कोई ऐसा जो चमके चांद बनकर?
पीली रोशनी में एक लड़का रात के दूजे पहर
रोज बुनता है फटी एक उजली सी चादर।
उसको आता है नहीं कवितायें लिखना
व्याकरण कमजोर है भाषाएं लिखना।
मां का आशिर्वाद कह लो या किसी का प्रेम कह लो
फिर भी महफिल में सुनाता ऐसा वैसा कुछ भी लिख कर
पीली रोशनी में एक लड़का रात के दूजे पहर
रोज बुनता है फटी एक उजली सी चादर।
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