यहीं काशी यहीं काबा पड़ा है - पोथी बस्ता
Responsive Ads Here

हाल का

Post Top Ad

Responsive Ads Here

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

यहीं काशी यहीं काबा पड़ा है


अभी झगड़े में सुन क्या क्या पड़ा है।
यहीं काशी यहीं काबा पड़ा है।

हमारी प्यास से देखो उलझकर,
मुसीबत में बहुत दरिया पड़ा है।

हक़ीक़त से अभी वाकिफ़ नहीं हो,
तुम्हारी आँख पे परदा पड़ा है।

उसे समझा मेरी बेटी के पीछे,
कई दिन से तेरा बेटा पड़ा है।

ग़ज़ल पढ़ना वो तुम अपने बदन पर,
जो मेरे होंठ से लिक्खा पड़ा है।
अमरेन्द्र अम्बर
जलालपुर,अम्बेडकर नगर,  उत्तर प्रदेश

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Bottom Ad

Responsive Ads Here