अभी झगड़े में सुन क्या क्या पड़ा है।
यहीं काशी यहीं काबा पड़ा है।
हमारी प्यास से देखो उलझकर,
मुसीबत में बहुत दरिया पड़ा है।
हक़ीक़त से अभी वाकिफ़ नहीं हो,
तुम्हारी आँख पे परदा पड़ा है।
उसे समझा मेरी बेटी के पीछे,
कई दिन से तेरा बेटा पड़ा है।
ग़ज़ल पढ़ना वो तुम अपने बदन पर,
जो मेरे होंठ से लिक्खा पड़ा है।
अमरेन्द्र अम्बर
जलालपुर,अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश
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