ये दुनिया आज कैसी हो गयी है।
बहुत सच्ची थी झूठी हो गयी है।
न जाने घर में क्यों मातम है उसके,
उसे जो फिर से बेटी हो गयी है।
जो बस्ती में किसी लायक नहीं था,
उसी की ताजपोशी हो गयी है।
पड़ी ग़ुरबत की उसपे मार ऐसी,
जवानी में वो बूढ़ी हो गयी है।
बहुत दिन से तुम्हें देखा नहीं है,
हमारी आँख मैली हो गयी है।
अमरेन्द्र अम्बर
जलालपुर,अम्बेडकर नगर, उत्तर प्रदेश
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