यादों का पिटारा, ये नौवीं कक्षा की बात है - मनीष कुमार झा - पोथी बस्ता
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शुक्रवार, 6 सितंबर 2019

यादों का पिटारा, ये नौवीं कक्षा की बात है - मनीष कुमार झा

नौंवी कक्षा की बात है। उस समय मुझे कहानियों की किताबें तथा कामिक्स आदि पढ़ने में बहुत दिलचस्पी थी। उस समय "प्रभात खबर" नाम के अखबार में सप्ताह के किसी एक दिन (शायद गुरुवार ठीक से याद नहीं) चार पन्नों वाला बाल विशेषांक आता था "बाल प्रभात" के नाम से। हमारे घर में यह अखबार नहीं आता था। मैं अपने उन दोस्तों से जिनके पास "बाल प्रभात" होता मांग लेता। कई दफा ऐसा हुआ कि मैं दोस्तों से "बाल प्रभात" मांग तो लाता लेकिन वापस नहीं कर पाता। कुछ दिनों के बाद दोस्तों ने "बाल प्रभात" देने से इंकार कर दिया।
उन दिनों हमारे स्कूल के प्रधानाध्यापक घर पर नौवीं और दसवीं के बच्चों को पढ़ाते थे। मैं भी उनके पास पढ़ने जाया करता था। संयोगवश उनके घर में "प्रभात खबर" आता था। एक दिन जब वो अखबार पढ़ रहे थे तब मैंने उनसे कहा कि सर आज इस अखबार के साथ "बाल प्रभात" भी आया होगा। क्या आप मुझे पढ़ने देंगे? उन्होंने एक सरसरी निगाह से मुझे देखा और वो चार पन्नों वाला "बाल प्रभात" मुझे थमा दिया। उस दिन के बाद से मुझे "बाल प्रभात" किसी से मांगने की जरूरत नहीं हुई। अखबार का वो हिस्सा मेरे लिए वो सहेज कर रख देते थे। मेरे पास आज कई किताबें हैं और ज्यादातर उपहार स्वरूप मिली हैं लेकिन ऐसा उपहार नहीं मिल पाया फिर कभी।
मेरे विद्यालय के समीप बरगद का एक बहुत बड़ा पेड़ हुआ करता था। न जाने कैसे उस वृक्ष के नीचे बैठने के लिए प्राकृतिक बेंच बन गए थे। उस दिन शिक्षक दिवस था। मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ वहीं बैठा हुआ था। कुछ लड़के शिक्षकों को देने के लिए उपहार लाए थे और कुछ लड़के मेरी तरह खाली हाथ आए थे। एक लड़का उपहार में कलम ले आया था। उसने कलम दिखाते हुए मुझसे कहा कि ये देखो ये सारे दस रुपये वाले हैं एक-एक कलम सभी शिक्षकों को देकर प्रणाम कर लेंगे। फिर उसने दूसरे जेब से एक और कलम निकाल कर दिखाते हुए कहा कि ये तीस रूपए का है इसे हेड सर को देना है।
अभी ये सब बातें हो ही रही थी कि दूर से हमारे प्रधानाध्यापक आते हुए दिखाई दिए। मैं उससे बातें करने लगा। जब वो एकदम नजदीक आ गए तो मैंने  अपने दोस्त से कहा कि यार वो तीस वाला कलम तो दिखाओ मुझे लगता है कि डैमेज है। उसने कलम निकाल कर मुझे थमा दिया। मैंने कलम लिया और प्रधानाध्यापक के तरफ दौड़ लगा दी। कोई कुछ समझ पाता इससे पहले मैंने उन्हें कलम देकर उनके पांव छू लिए।
मैंनें कई लोगों को कई उपहार दिए लेकिन ऐसा उपहार किसी को भी नहीं दे पाया।
वैसे तो कई लोगों से कई तरीके से प्रतिशोध लिया लेकिन दोस्त के "बाल प्रभात" देने से इंकार करने का प्रतिशोध आजीवन याद रहेगा।
प्रधानाध्यापक का नाम "रविन्द्र नाथ मिश्रा" है और हम उन्हें "आर एन एम सर" बुलाते हैं।
एक बार उन्होंने कुछ ऐसा याद करने को दिया जो कोई याद नहीं कर सका। उस दिन सब सामूहिक रूप से पिटे। लगभग सभी रुआंसे थे पुरी कक्षा शांत थी। पढ़ाई के बाद छुट्टी से ठीक पहले उन्होंने कहा घर जाकर क्या करोगे? सबने कहा खाना खाएंगे।
उन्होंने कहा कि खाने के बाद अगर गाने का मन करे तो कुछ भी गा लेना चाहिए। हमने कहा जैसे कि?
उन्होंने कहा जैसे कि "साईकिल का ऐसा चला चक्कर, कि भाग गए सब मच्छर।
थोड़ी देर पहले जो कक्षा शांत थी ठहाकों से गूंज उठी।

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