कविता मंद मंद मुस्कुराती है
जब नवांकुरों के कलम से
चाहे आड़ी तिरछी ही सही
पर रची जाती है
कविता नहीं व्याकरण कोई
नहीं इसकी कोई परिभाषा
अंतर्मन की भावना हैं
है हर अदने की अभिलाषा
इन छोटे छोटे पत्र पत्रिकाओं में
छपकर वो हौसला जब पाता है
भले न कवि बन सके
पर वो कविता का हो जाता है
मत रोक उन्हें जो
कुसुम कोमल चटककर
अब खिलने को है
कच्ची डालियाँ जो दृष्टिगोचर अभी
इनमें से ही कल
कुछ वृक्ष घने बनने को हैं
कविता न मरी कभी
न अब मरने को है
जब हर नवोदित के हाथ
कलम हो तो समझो
नदी अब समंदर से मिलने को है
-अमित कुमार अम्बष्ट (आमिली)
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