कई बार लोग यह अटपटा सवाल पूछ लेते हैं,
क्या आपको सुंदर महिलाओं को देखना अच्छा लगता है
लेकिन मुझे कोई हिचक नहीं होती स्वीकारने में
हाँ मुझे अच्छी लगती हैं सुंदर औरतें!
कितनी सुंदर लगती हैं वो अलसाई सी मम्मियां,
जो सुबह सुबह स्कूल बस तक बच्चों को बहलाते हुए, पुचकारते हुए छोड़ने आती हैं
ताकि उनका बच्चा, आगे चलकर एक कामयाब इंसान बन जाए
कितनी सुंदर लगती है सब्जी बेचती महिलाएं,
जो उपनगरों से भोर तीन बजे
लोकल ट्रेन में रवाना हो जाती हैं
भारी भरकम सब्जी की गठरियाँ लेकर
ताकि लौटकर अपने बच्चों को पेट भर कर भात और तरकारी खिला सकें
कितनी सुंदर लगती हैं स्कूटी पर सवार होकर
कंधे पर बैग लादे हुए अपने स्कूल कौलेज जाती लड़कियाँ
जो सुबह सुबह टिफिन लेकर घर से निकल जाती हैं
हफ्ते में छह दिन ठण्डा लंच ही ले पाती हैं
ताकि अपने पैरों पर खड़ी हो सकें
कितनी सुंदर लगती हैं वो महिलाएं,
जो घर के सभी सदस्यों का नाश्ता, खाना बनाने के बाद
निकल पड़ती हैं कंधे पर बैग लटकाकर ऑफिस के लिए
ताकि दो पैसे घर में लाकर बूढ़े होते माँ बाप
या घर चलाने में पति की मदद कर सकें
हाँ, मुझे ऐसी सुंदर महिलाओं को देखना
वाकई अच्छा लगता है
मैं अक्सर आते जाते बहुत गौर से देखता हूँ इन्हें
इनके सौंदर्य को निहारने के साथ इनके जीवट को सराहने का बहुत दिल करता है मेरा
यही वो सुंदर महिलाएं हैं
जो खेल के मैदान में,
अंतरिक्ष में, आसमान में,
अस्पताल और खेत खलिहान में,
अदालतों और विज्ञान में
करामात कर रही हैं
अखाड़े में बरसात मुक्का लात कर रही हैं
अगर इनको देखना, सराहना, मुस्कुराना जुर्म है
तो ये जुर्म बार बार करना मुझे कुबूल है
-शिखर चंद जैन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें