क्या खूबसूरत थे न वो दिन जब हमें दुर्गा पूजा और दिवाली की एक साथ एक महीने की छुट्टी मिलती थी। अक्टूबर और नवंबर के महीने साल के वो दो ऐसे महीने होते थे जो हमें सबसे ज्यादा पसंद थे और वो सबसे जल्दी बीत जाते थे। दीवाली का क्रेज ना 10 दिन पहले से चालू हो जाता था। हर दिन 20 रुपये के पटाखे लेके आना जिसमें 5 रुपये की टिकड़ी ज़रूर होती थी जो 5 रुपये की 10 आती थी और 2 रुपये का साँप का डब्बा। दीवाली की शुरुआत मे ही ज़िद करके टिकड़ी फोड़ने वाली बंदूक ले आया करते थे हम और फिर पूरी बिल्डिंग में उधम मचाते और CID CID खेलते थे। एक ना वो 5 रुपये के 10 पीस आलू बम आते थे जो फेंकने से फूटते थे वो मुझे सबसे ज्यादा पसंद थे। उम्र के साथ साथ पटाखों का स्तर बढ़ता था। आलू बम से लड़ी बम, लड़ी बम से चॉकलेट बम लेकिन वो मुर्गा छाप चकरी पे नाचना और उससे फुटबाल खेलना बंद नहीं हुआ। एक बार मैंने लात मार कर चलती चकरी दूसरे मकान में उड़ा दी थी और फिर सब ऐसे भागे जैसे पाकिस्तान वाले लोग हिंदुस्तान में बम लगाकर भागते हैं। दीवाली वाले दिन ना बिल्डिंग में कम्पीटिशन लगता था कौन कितनी अच्छी लाइटिंग अपने घर में लगाएगा और कौन कितनी अच्छी रंगोली बनाएगा।
यार बचपन वाली दिवाली ना महज़ एक त्योहार नहीं थी हम पूरी एक दुनिया जी लेते थे उसमें और बेहद खुश हूं कि मैंने इतना कुछ जिया है अपने बचपन वालें दोस्तों के साथ जो आज भी मेरे साथ है। फर्क़ सिर्फ इतना है कि अब बस व्हाट्सैप पर हैप्पी दिवाली बोल देते हैं, कॉल कर लेते हैं और अपने अपने घरों में दिवाली माना लेते हैं। पता है इंसान सब कुछ कर सकता है नाम और पैसों से लेकिन बचपन वापस कभी नहीं ला सकता। इसीलिए आपके भी घर में कोई बच्चा है तो उसे अभी उसकी दिवाली एंजॉय करने दीजिए, पटाखे छुड़वाईये, दोस्तों से मिलने दीजिए। बाद में यही सब बस यादें बन कर रह जाती है।
Happy Diwali ❤
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